Wednesday, March 17, 2021

श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़ ने किया पालकाप्य मुनि रचित हस्त्यायुर्वेद का विमोचन


आज शम्भु निवास, उदयपुर में महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउण्डेशन के अध्यक्ष एवं प्रबंध न्यासी श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़ ने पालकाप्य मुनि द्वारा रचित हस्त्यायुर्वेद का विमोचन, ग्रंथ की अनुवादिता एवं संस्कृत की सुविख्यात पंडिता डाॅ. (श्रीमती) मधुबाला जैन के साथ किया। इस अवसर पर प्रो. पुष्पेन्द्रसिंह राणावत आदि उपस्थित थे। 

विमोचन पर श्रीजी अरविन्द सिंह मेवाड़ ने बताया कि ऐसे दुर्लभ शास्त्रों का प्रकाशन इसलिये भी आवश्यक है ताकि शास्त्रों में लिखे गये बहुउपयोगी ज्ञान को हम संजोये रख सकें और भविष्य में ऐसे ग्रंथों का सद्उपयोग जग कल्याण में संभव हो सकें। यही फाउण्डेशन का उद्देश्य रहा है।

आयुर्वेद भारतीय समाज में सदियों पूर्व से अपनाई जाने वाली विश्व की सबसे प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति ही नहीं, अपतिु यह जीवन का विज्ञान भी है। ऋषियों-मुनियों ने सदा जीव कल्याण कर्म को धर्म बनाकर समाज में प्रस्तुत किया। ऋषियों ने मानव कल्याण ही नहीं समस्त ब्रह्माण्ड के कल्याण को ध्यान में रख ज्ञान-विज्ञान का आविष्कार किया गया। असाध्य बीमारियों को जड़ से उन्मूलन के लिए मानव-आयुर्वेद के समान ही पशु-आयुर्वेद ग्रंथों का भी निर्माण किया गया। जिनमें सहदेव द्वारा गवायुर्वेद, शालिहोत्र द्वारा अश्वायुर्वेद तथा त्रेतायुग में राजा दशरथ के समकालीन पालकाप्य मुनि द्वारा रचित हस्त्यायुर्वेद तथा गज शास्त्र प्रमुख है।

पालकाप्य मुनि के ये दोनों ही ग्रंथ हस्ति-विज्ञान में प्राप्त सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं। हस्त्यायुर्वेद गद्य एवं पद्य दोनों ही रूपों में लिखित है। यह सम्पूर्ण गं्रथ वार्तालाप की शैली में लिखा गया है। इस गं्रथ में हाथियों की उत्पत्ति, उनमें उत्पन्न विकार, विकारों के कारण, लक्षण, रोग की प्रकृति, उपचार के तरीके, औषधियों को बनाने की प्रक्रिया, हाथियों की उम्र, स्वभाव तथा जलवायु के आधार पर उनका प्रयोग आदि के विस्तृत दिशा निर्देशों का वर्णन किया गया है। हस्त्यायुर्वेद हाथियों का शरीर-विज्ञान तथा क्रिया विज्ञान है। इस सम्पूर्ण संहिता में कुल चार खण्ड है, जिसमें 160 अध्याय तथा लगभग 12 हजार श्लोकों में हाथियों के शरीर में होने वाली 315 बीमारियों का वर्णन है।

प्राचीन हस्तलिखित हस्त्यायुर्वेद की महिमा को समझते हुए उदयपुर करजाली महाराज साहिब श्री बाघ सिंह जी ने विक्रम संवत् 1811 में पालकाप्य ऋषिः कृत हस्त्यायुर्वेद की प्रतिकृति करवाकर गं्रथ को अमर बनाने में अहम योगदान दिया, जिसे महाराणा मेवाड़ हिस्टोरिकल पब्लिकेशन्स ट्रस्ट, उदयपुर द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस ग्रंथ में हाथियों की चिकित्सा एवं जाँच संबंधी लाइन स्केच चित्रों को भी दर्शाया गया है।



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